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पुत्र वियाेग कविता.... सुभद्रा कुमारी चौहान

 सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता.... पुत्र वियोग

सुभद्रा कुमारी चौहान कविता, पुत्र वियाेग कविता class 12th


 सुभद्रा कुमारी चौहान छायावादी युग के राष्ट्रीय काव्यधारा की कवि हैं। प्रसिद्ध पुत्र वियोग कविता उनके काव्य संकलन "मुकुल" से ली गई है। विद्वानों की माने तो प्रस्तुत कविता निराला जी की "सरोज स्मृति" के बाद हिंदी जगत की दूसरी शोक गीत है।

 


जो पुत्र के असामयिक निधन के बाद कवित्री मां के द्वारा लिखी गई है। इस कविता के द्वारा कवित्री ने पुत्र को खोने के बाद एक मां की अवस्था को अति मार्मिक चित्रण किया है। 




   प्रस्तुत है पुत्र वियोग शीर्षक कविता



 आज दिशाएं भी हंसते हैं

  है उल्लास विश्व पर छाया,

  मेरा खोया हुआ खिलौना

अब तक मेरे पास न आया ।



           शीत ना लग जाए, इस भय से  

           नहीं गोद से जिसे उतारा,

           छोड़ काम दौड़ कर आई

           मां  कहकर जिस समय पुकारा ।

  

थपकी दे दे जिसे सुलाया

जिसके लिए लोरियां गाई ,

जिसके मुख पर जरा मलीनता

देखा आंख में रात बिताई ।


           जिसके लिए भूल अपमान 

               पत्थर को भी देव बनाया ,

               कहीं नारियल दूध बताशे

              कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।

 


फिर भी कोई कुछ ना कर सका

छीन ही गया खिलौना मेरा,

मैं असहाय विवश बैठी ही 

रही उठ ही गया छैना मेरा ।


                   तड़प रहे हैं विकल प्राण ये

                मुझको पल भर शांति नहीं है,

                वह खोया धन पा न सकूंगी

                इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।


    

फिर भी रोता ही रहता है 

नहीं मानता है मन मेरा, 

बड़ा जटिल नीरस लगता है 

सुना सुना जीवन मेरा  ।


                यह लगता है एक बार यदि 

                पल भर को उसको पा जाती,

                जी  से  लगा  प्यार  से  सिर 

                सहला सहला उसको समझाती।

 

मेरे  भैया  मेरे  बेटे अब 

मां को यूं छोड़ ना जाना,

बड़ा कठिन है बेटा खोकर 

मां को अपना मन समझाना।


               भाई बहन भूल सकते हैं

               पिता भले ही तुम्हें भुलावे,

              किंतु रात दिन की साथी मां

              कैसे अपना मन समझावे ।




पुत्र वियाेग कविता शीर्षक का भावार्थ


  #1. पुत्र वियोग शीर्षक कविता में पुत्र के असामयिक निधन के बाद मां के हृदय में उठने वाली शोक भावनाओ को कवयित्री ने अभिव्यक्त किया है।


 

#2. कवित्री प्रकृति में व्याप्त उल्लास पूर्ण वातावरण में अपने जीवन में सूनापन अनुभव कर रही हैं।  सुभद्रा कुमारी चौहान कहती हैं कि आज चारों दिशाएं हंस रहीं हैं, खुश हैं । सारे संसार में खुशियां छाईं हैं। परंतु मेरा जो खिलौना अर्थात पुत्र जो मुझसे दूर चला गया है। वह अभी तक लौट कर मेरे पास नहीं आया। यानी कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है। 



#3. आगे कवित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि ठंड कहीं ना लग जाए। इस भय से उसे अपनी गोद से नहीं उतारती थी। उसने मुझे जब भी मां कह कर आवाज लगाई मैं अपना सारा काम– काज छोड़ कर उसके पास दौड़ कर आती थी। जिससे उसकी सभी जरूरतों को पूरा कर सकूं।



 #4.     अगली पंक्ति का अर्थ है कि जिसे थपकी देकर सुलाया और जिसके लिए कवित्री रातों में जगकर लोरियां सुनाती है। जब भी उसके चेहरे पर उदासी दिखाई पड़ती तो पूरी रात स्वयं जगकर व्यतीत करती। 



 #5.  कवयित्री पुत्र बिछोह से  मर्माहत है। उसकी आकांक्षा अपने पुत्र को स्वस्थ तथा सुखी देखने की  है । कवयित्री कहती है कि उसने पत्थर की भी पूजा की। पत्थर की  प्रतिमा को देवता माना , मंदिर में जाकर नारियल, दूध तथा बताशे चढ़ाए और ईश्वर से प्रार्थना की। लेखिका सदा अपने पुत्र को हंसता खेलता देखना चाहती थी। पुत्र की प्रसन्नता में ही उसकी खुशी निहित थी।



#6. कवयित्री का कथन है कि पूर्ण सतर्कता के बावजूद भी उसका खिलौना छिन गया। वह असहाय हो गई। वह विवश ही बैठी रही, कुछ न कर सकी। उसका छोटा– सा पुत्र उससे दूर चला गया। नियति के क्रूर हाथों ने  उसके छौना को छीन लिया। कवयित्री का हृदय शोकाकुल संवेदना को झकझोर देता है। कवयित्री के प्राण तड़प रहे हैं पल भर को चैन नहीं। मन अशांत है खोए हुए धन की तरह अपना बेटा अब अपने पास नहीं रहा इसमें तनिक भी संदेह नहीं रह गया है।



 #7.   कवयित्री ने इस पंक्ति में  पुत्र वियोग की ज्वाला से दग्ध अपने मन की व्यथा व्यक्त की है। कवयित्री का मन रोता ही रहता है उसे पल भर को शांति नहीं है। उसका मन यह मानने को तैयार नहीं की उसके पुत्र का निधन हो गया है।  लेखिका को अपना जीवन नीरस और सुना– सुना सा लगता है। 



#8.  कवयित्र को अब भी एक आशा मन में रहती है कि यदी पुत्र को वह पल भर के लिए भी पा लेती। तो पुत्र को वह अपने कलेजे से लगाकर प्यार से उसके सर को सहलाती और उसे समझाती।



#9. कवयित्र कहती की मेरे भैया! मेरा बेटा! मां को छोड़ कर दूर न जाओ। बहुत मुस्किल है पुत्र को खो कर एक मां के मन को समझाना। अपने बेटे को खोकर अपने मन को समझाना बहुत कठिन काम है। 



#10.  कवयित्री का कथन है कि उसके भाई तथा बहन उसे भूल सकते हैं। उसके पिता भी उसे भूला सकते हैं किंतु मां अपने बेटे को कभी नहीं भूल सकती। वह तो सब समय उसके साथ रहने वाली है। उसकी सर्वोत्तम सहयोगिनी है। वह रात दिन उसके सुख– दुख का ख्याल रखने वाली ममतामई मां है।



 प्रस्तुत कविता में पुत्र  के असमय निधन के बाद पीछे तड़पते रह गए मां के हृदय के निदारूण शोक की  सादगी भरी अभिव्यक्ति है। सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता आपको कैसी लगी नीचे कॉमेंट बॉक्स में जरुर बताए।

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