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हरिवंश राय बच्चन का कवि परिचय |
इनकी रचनाओं में व्यक्ति वेदना, राष्ट्र चेतना और जीवन के स्वर मिलते हैं। इन्होंने आत्मानुभूति, आत्म साक्षात्कार तथा आत्माभिव्यक्ती के बल पर काव्य रचना की है। जब जैसी अनुभूति हुई वैसे अभिव्यक्ति दी। बच्चन जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड, नेहरू पुरस्कार और सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया।
आज हम जिस कविता की बात करने जा रहे हैं उस कविता का शीर्षक है _______"जो बीत गई " ______
(१)
जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया,
अंबर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहां मिले;
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अंबर शोक मनाता है !
जो बीत गई सो बात गई।
(२)
जीवन में था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया,
मधुबन की छाती को देखो,
सूखीं कितनी इसकी कलियां,
मुरझाई कितनी वल्लरियां,
जो मुरझाई फिर कहां खिली;
पर बोलो सूखे फूलों पर,
कब मधुबन शोर मचाता है!
जो बीत गई सो बात गई।
(३)
जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन- मन दे डाला था,
वह टूट गया तो टूट गया,
मदिरालय का आंगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं कब उठते हैं,
पर बोलो टूटे प्यालों पर,
कब मदिरालय पछताता है!
जो बीत गई सो बात गई।
(४)
मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,
मधुघट फूटा ही करते हैं,
मधु जीवन लेकर आए हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फ़िर भी मदिरालय के अंदर,
मधु के घट हैं, मधु प्याले हैं,
जो मादकता के मारे हैं,
वे मधु लूटा ही करते हैं,
वह कच्चा पीने वाला है,
जिसकी ममता घट- प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ,
कब रोता है, चिल्लाता है!
जो बीत गई सो बात गई।
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जो बीत गई सो बात गई कविता की व्याख्या
यह कविता चार भागों में लिखी गई है। आज के युग में कभी ना कभी हम मानसिक परेशानियों से गुजरते हैं, ऐसी स्थिति में बच्चन जी की यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हमें सब कुछ भूल कर कैसे जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
कविता के पहले खंड में कवि यह कहना चाहता है कि जो समय बीत गई उसे भूलने में ही हमारी भलाई है। मिलना और बिछड़ना यह प्रकृति का नियम है।जीवन में कभी कभी ऐसा होता है कि जो हमारे काफी प्रिय हैं ,उनसे भी हमें बिछड़ना पड़ता है। इसे हमें सहज रूप में स्वीकार करना चाहिए। कवि इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए उदाहरण स्वरूप आकाश में टूटते तारों से तुलना करता है। और कहता है कि आकाश में रोज कितने तारे टूटते हैं। जो टूट जाते हैं वे फिर कभी नहीं मिलते। पर अंबर (आकाश) टूटे हुए तारों पर कभी शोक नहीं मनाता है। इसलिए बीते हुए दु:ख पूर्ण समय को याद करना व्यर्थ है।
कविता के दूसरे खंड में कवि ने कुसुम (फूल )के माध्यम से जीवन के रहस्य को समझाने का प्रयास किया है।कवि कहता है कि मधुबन (फूलों का बगीचा )में कितनी कलियां सूख गई ,कितनी लताएं (वल्लरियां) मुरझा गई। परंतु जो सूख गई या मुरझा गई ,वे फिर कभी खिलती नहीं।पर मधुवन उन मुरझाएं फूलों पर कभी शोर नहीं मचाते हैं ,बीते हुए समय को पकड़ने का प्रयास व्यर्थ हैं।
कविता के तीसरे अंश में बच्चन जी ने यह समझाने का प्रयास किया है कि जब हम जन्म लेते हैं ,तभी से हम मृत्यु की ओर बढ़ने लगते हैं। जन्म का मूल कारण ही मृत्यु है ।कवि ने इन पंक्तियों में जीवन की तुलना मदिरालय से की है ।मदिरालय में कितने ही प्याले टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं। जो टूट जाते हैं वह पुनः जूड़ नहीं पाते। परंतु टूटे तारों पर मदिरालय कभी नहीं पछताता है।अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा शरीर मिट्टी का बना हुआ है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा ।परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। हमारा शरीर भी तो इस मिट्टी के प्याले की तरह ही है।
कविता के चौथे अंश में बच्चन जी ने इस कविता का सार प्रस्तुत किया है। मृत्यु के समक्ष मनुष्य की सारी शक्तियां असमर्थ है कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति कमजोर है । वह दुख पूर्ण समय को याद करता रहता है। परंतु जो व्यक्ति मानसिक रूप से दृढ़ होते हैं वे उस समय को याद कर अपना भविष्य बर्बाद नहीं करते इसलिए कवि कहता है कि जो बीत गई सो बात गई।
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टिप्पणियाँ
Nice
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThank you 😌
हटाएंHa
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंVery good
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंVery helpful
जवाब देंहटाएंThanks keep learning
हटाएंNice👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank u itni aachi tarike se samjhane ke liye 🙏
जवाब देंहटाएंHelpful
जवाब देंहटाएंThank you so much for helping
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