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तू क्यों बैठ गया है पथ पर... कविता

 

तू क्यों बैठ गया है पथ पर..........                हरिवंश राय बच्चन

तू क्यों बैठ गया है पथ पर.... कविता

       


हरिवंश राय बच्चन मुख्य रूप से हालावाद प्रवर्तक के कवि माने जाते हैं। उनकी कविताओं में जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। असहयोग आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन तथा स्वतंत्रता के संघर्ष ने बच्चन जी को जीवन को जीने का आत्मविश्वास और नई दृष्टि प्रदान की। प्रस्तुत है उनकी लोकप्रिय कविता______ तू क्यों बैठ गया है पथ पर? इस कविता में बच्चन जी ऐसे लोगों को संबोधित कर रहे हैं जो जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के पथ पर चलते–चलते अचानक थक हार कर बैठ जाते हैं और यह मान लेते हैं कि आगे बढ़ना उनके लिए संभव नहीं है।


मनुष्य को अपने जीवन में कर्मशील रहना चाहिए। इस कविता का मुख्य लक्ष्य है कि जो मनुष्य जीवन में थक हार कर बैठ गए हैं। उन्हें अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना।


               तू क्यों बैठ गया है पथ पर


तू क्यों बैठ गया है पथ पर?

ध्येय न हो पर हैं मग आगे,

बस धरता चल तू पग आगे।

 बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!

 तू क्यों बैठ गया है पथ पर? 


मानव का इतिहास रहेगा..

कहीं , पुकार – पुकार  कहेगा।

निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!

तू क्यों बैठ गया है पथ पर?


जीवित भी तू आज मरा सा,

 पर मेरी तो यह अभिलाषा ,

चिता –निकट भी पहुंच सकूं मैं अपने पैरों – पैरों चलकर!

तू क्यों बैठ गया है पथ पर..?


तू क्यों बैठ गया है पथ पर.... कविता



तू क्यों बैठ गया है पथ पर summry


यह कविता हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ प्रेरणा– गीत है। जो जीवन को कर्मठ और गतिमय  बनाए रखने का संदेश देती है। इस कविता को कवि ने तीन खंडों में विभक्त किया है। 


पहले खंड में बच्चन जी मनुष्य जाति से पूछते हैं कि तू क्यों बैठ गया है पथ पर? जीवन चलने का नाम है  हमें सफर जारी रखना चाहिए। जीवन का भले ही कोई लक्ष्य ना हो फिर भी थमना नहीं चाहिए। क्योंकि रास्ता तो आगे ही हैं। बस कदम आगे की ओर बढ़ाते चलो। तुम मत रुको आगे बढ़ने वालों के समूह में बैठ जाओगे तो बस तुम्हारा तमाशा बनकर रह जाएगा। तुम पिछड़ जाओगे। फिर तुम क्यों बैठ गए हो पथ पर ?


 

कवि अगली पंक्तियों में बड़े ही सरल तरीके से व्याख्या कर कहते हैं कि इस संसार में जो मनुष्य महान होते हैं। वही इतिहास रचते हैं। दुनिया उन्हें ही याद रखती हैं। उनके जाने के बाद भी लोग उन्हें याद रखते हैं स्वर्ण अक्षरों में उनका नाम लिखा जाता है। यह  निश्चित है कि जो भी इस पृथ्वी पर आया है उसे एक न एक दिन जाना है लेकिन इतिहास उनके कृत्य को याद रखेगा और आने वाली पीढ़ी को सदैव चलते रहने के लिए प्रेरित करेगा।  फिर भी तुम क्यों बैठ गए हो पथ पर?



कवि अंतिम खंड में बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहते हैं। यदि तू जीवन पथ पर रुक गए तो जीवित होते हुए भी तुम मृत्य समान हो। परंतु मेरी तो यह अभिलाषा है कि जब मैं अपने अंतिम समय में चिता के निकट भी पहुंच सकू तो अपने ही पैरों से चल कर जाऊं। किसी का सहारा ना लेना पड़े। यानी जीवन के अंतिम क्षण तक खुद पर ही निर्भर रहूं।     फिर तुम क्यों थक हार कर बैठ गए हो पथ पर?


इस तरह बच्चन जी इस कविता के माध्यम से हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं। यदि कोई भी कठिनाई  आए तो सकारात्मक ढंग से हल करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।




यदि आपको इस कविता से प्रेरणा मिलती है तो नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करें ।👍



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