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आजादी किसे प्यारी नहीं लगती? पशु पक्षि भी कैद में रहकर जीना नहीं चाहते। हम तो भला मनुष्य हैं। परंतु क्या हमें आजादी मिलना आसान था? नहीं, इस आजादी की हमें कीमत चुकानी पड़ी थी। कई वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा था, कई आंदोलन किए गए , कितनी बलिदाने देनी पड़ी। तब जाकर हम इस गुलामी की जंजीर से मुक्त हुए हैं। इसलिए हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य बनता है कि हम अपनी मातृभूमि और देश की अक्षुणता के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ बने। हम इस साल 2020 में 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। जानते हैं कि यह आजादी कैसे मिली?
ख़िलाफत आंदोलन क्या था
प्रथम विश्व युद्ध में पराजय के बाद तुर्की के खलीफा को पद से हटा दिया गया था। भारत के मुसलमानों को तुर्की के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार पसंद नहीं था। 1920 के आरंभ में भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन की नीति बदलने के लिए बाध्य करने हेतु जोरदार आंदोलन प्रारंभ किया जिसे खिलाफत आंदोलन कहा गया।
महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर अधिवेसन (दिसंबर 1919) में समर्थन पाकर आंदोलन काफी मजबूत हो गया। गांधी जी ने इसे हिंदू -मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा। खिलाफत आंदोलनकारियों ने तीन सूत्री मांग पत्र तैयार किया। इसी बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (सितम्बर 1920) में गांधी जी की प्रेरणा से अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध में दो प्रस्ताव पारित कर असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया। दिसंबर 1920 ई. के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में कोलकाता अधिवेशन के प्रस्ताव की पुष्टि की गई तथा स्वशासन की जगह स्वराज का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया।
असहयोग आंदोलन के उद्देश्य
असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन था। इस जन आंदोलन के मुख्यत: तीन कारण थे।
1. खिलाफत का मुद्दा
2. पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्धध न्याय प्राप्त करना।
3. स्वराज की प्राप्ति करना।
इस आन्दोलन में दो कार्यक्रमों को अपनाया गया। प्रथम अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने की नीति अपनाई गई। जिसके अंतर्गत उपाधि एवं अवैतनिक पदों का त्याग करना, एवं सरकारी स्कूल, कॉलेज का बहिष्कार करना, विधान परिषद के चुनावों का बहिष्कार तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना था।
द्वितीय यह की न्यायालय के स्थान पर पंचों का फैसला मानना, स्वदेशी को अपनाना, चरखा आदि को लोकप्रिय बनाना, विद्यालयों एवं कॉलेजों की स्थापना करना ताकि सरकारी स्कूलों कॉलेजों का बहिष्कार करने वाले छात्र पढ़ाई जारी रख सकें।
संपूर्ण भारत में असहयोग आंदोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास जैसे बड़े-बड़े बैरिस्टरों ने अपनी चलती हुई वकालत को छोड़ आंदोलन में अपना नेतृत्व प्रदान किया।अंग्रेजी सरकार इस आंदोलन से पूरी तरह हिल गई। अब सरकार ने आंदोलन को गैर कनूनी करार देते हुए लगभग 30,000 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के विरोध में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की धमकी दी। लेकिन इसी बीच उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चोरा -चौरी कांड हुआ।राजनीतिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके 5 फरवरी 1922 ई. को 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली।थाना फलत: 12 फरवरी 1922 को गांधीजी के निर्णय अनुसार आंदोलन को स्थगित कर दिया गया। गांधी जी को ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 1935 में गिरफ्तार करके 6 वर्षों का कारावास की सजा दी गई।
लेकिन इस असफलता के बावजूद इस आंदोलन ने महान उपलब्धि हासिल की कांग्रेस और गांधी जी में संपूर्ण भारतीय जनता का विश्वास जागृत हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण
यह आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक सता के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में शुरू किया गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन दूसरा बड़ा जन आंदोलन था।असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई थी। इसी बीच पुनरावृत्ति हुई जिसने मृतप्राय राष्ट्रवाद को नया जीवन प्रदान किया।
दांडी यात्रा (12मार्च से 6 अप्रैल 1930 ई.)
गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी यात्रा से की। 12 मार्च 1930 ई. को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी समुद्र तट पर गांधी ने ऐतिहासिक यात्रा शुरू की। 24 दिनों में 250 किलोमीटर की पदयात्रा के पश्चात 5 अप्रैल को वे दांडी पहुंचे तथा 6 अप्रैल को समुन्द्र के पानी से नमक बनाया और कानून का उल्लंघन किया। देखते- देखते यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया। इस आंदोलन में किसानों, महिलाओं एवं आदिवासियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
अंग्रेजों भारत छोड़ो-1942
द्वितीय विश्वयुद्ध से उपजी परिस्थितियों में महात्मा गांधी ने अंग्रेजो को भारत छोड़ो की चेतावनी दी। इसके लिए गांधीजी ने जनता को "करो या मरो" का नारा दिया। हालांकि गांधी जी ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान से 8 अगस्त को अहिंसक संघर्ष का ही आवाहन किया था। लेकिन अंग्रेजी सरकार ने दमनात्मक कार्यवाई करते हुए गांधी जी सहित कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को जेल में डाल दिया। नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता और उग्र हो गई। किसानों, विद्यार्थियों एवं महिलाओं की भागीदारी ने आंदोलन को काफी उग्र और ताकतवर बना दिया।
अंग्रेजों ने पुन: दमन का सहारा लिया।हजारों लोग पुलिस की गोली से मारे गए। बहुत जगह पर हवाई जहाज से भी गोलियां बरसाई गई। परंतु इस आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को झुकने पर बाध्य कर दिया।
15 अगस्त 1947
राष्ट्रीय आंदोलन जैसे-जैसे संगठित होकर स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था। अंग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो" की नीति का सहारा लिया। कांग्रेस से असंतुष्ट कुछ मुसलमानी नेताओं ने मुस्लिम लीग की स्थापना की। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग के समर्थन में जनता से प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस, मार्च 1946 को मनाने का आवाहन किया। इसी बीच कोलकाता में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। उसने तेजी से अधिकांश भारत को अपने चपेट में ले लिया। लाखों लोग मारे गए। करोड़ों लोग शरणार्थी हो गए। इस परिस्थिति को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने भारत को विभाजित करने की सोची। यह अंग्रेजों की फूट डालो की नीति की पराकाष्ठा थी। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु सरकार ने लॉर्ड माउंटबेटन को भारत भेजा। माउंटबेटन ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के प्रावधानों के अनुसार भारत को विभाजित करते हुए। 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्र कर दिया।
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