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जैविक खेती के लाभ

 जैविक खाद की उपयोगिता

हैलो दोस्तों, आज के इस पोस्ट में हम जैविक खेती के विषय में बात करेंगे। जैविक खाद की मदद से, किसान कैसे अपनी फसल की पैदावार को बढ़ा सकता हैं,तो आइए जानते हैं।


भौतिक विविधताओं से भरा हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70% जनता कृषि पर आश्रित है। देश की विशाल जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। परंतु दुःख की बात यह है कि कृषि प्रधान होने के बावजूद भी हमारे देश की कृषि अत्यन्त पिछड़ी अवस्था में है। यहां किसानों की स्थिति दयनीय है। इसके पिछड़ेपन का मुख्य कारण यह है कि यहां के किसान आज भी कृष के प्राचीन एवं परम्परागत तरीकों का प्रयोग करते हैं। वे मानसून पर निर्भर रहते हैं, उनके पास सिंचाई सुविधाओं का अभाव है, उन्हें उचित जानकारी नहीं मिल पाती, वे असंतुलित रासायनिक खाद पदार्थो का प्रयोग करते हैं इत्यादि ऐसे अनेकों कारण है।


तो दोस्तों, फसल की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में रासायनिक गुणों के साथ - साथ भौतिक गुणों में सुधार की निरंतर आवश्यकता होती है। मिट्टी की उर्वराशक्ती को बनाए रखने तथा पौधों में पोषक तत्वों की उपलब्धि और इसकी पूर्ति बढ़ाने के लिए जैविक खाद का उपयोग लाभदायक है। मिट्टी में जीवाश्म के निरंतर क्षय की भरपाई के लिए जैविक खदों के प्रयोग से जैविक खेती करना चाहिए।



अच्छी पैदावार के लिए एक अति महत्वपूर्ण विकल्प है जैविक कृषि। जैविक कृषि से तात्पर्य है फसल का उत्पादन ऐसी विधि से की जाए जो प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों का प्रयोग कर , प्राकृतिक प्रणाली को बिना हानि पहुंचाए, प्रकृति के साथ मिलकर कार्य कर सकें। पिछले कुछ वर्षों में रसायनिक खादों के लगातार प्रयोग से उपज पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। इसके साथ-साथ पर्यावरण का हास्य एवं मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है।

जौविक खेती की उपयोगिता

जैविक खेती फसल उत्पादन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें मुख्य रूप से जैविक स्रोतों से उपलब्ध वस्तुओं से जैविक कृषि की जाती है। जैविक कृषि में रासायनिक उर्वरकों , किट व रोग नाशकों और खरपतवार नाशकों आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए खाद का प्रयोग जैसे-: फसल अवशेष, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और प्राकृतिक खनिज इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। साथ ही राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग बढ़ती जा रही है।



जैविक खाद का प्रयोग कर जैविक खेती की जाती है इसका उपयोग प्रत्येक फसल में करना आवश्यक है। आइए जानते हैं वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद के विषय में:-

वार्मी कंपोस्ट

जैसा कि हम सब जानते हैं कि केंचुआ किसानों के मित्र कहे जाते हैं। देशी केंचुएं खेत में हमेशा से पाए जाते हैं। ये केचुएं फसल की अवशेषों और कार्बनिक पदार्थो को खाकर छोटी - छोटी गोली जैसा खाद तैयार करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह केंचुआ खेत की भी जुताई स्वत: ही कर देते हैं। इसलिए खेतों में केचुओं की संख्या अधिक से अधिक रहनी चाहिए। केंचुएं की कुछ विशेष प्रजाति गोबर और अन्य कार्बनिक पदार्थों को तेजी से खा कर इसका खाद बना देती है। जिसे वर्मी कंपोस्ट कहते हैं। इसे तैयार करने में 1 से 4 महीने लग जाते हैं। यह खाद रसायनिक खादों से 5- 7 गुना अधिक फायदेमंद होता है। इसमें केंचुए द्वारा उपज बढ़ाने के लिए और रोगों से लड़ने के लिए कुछ रसायन स्वत: ही मिला दिए जाते हैं।


हरी खाद

भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने तथा अच्छी फसल की आवश्यकता के लिए हरी खाद एक अच्छा उपाय है।सनईचा जंगली नील आदि का प्रयोग सीधे हरी खाद के रूप में किया जाता है। हरी खाद के प्रयोग से 75 - 80 क्विंटलजैव जैव पदार्थ के साथ-साथ 40 से 60 किलोग्राम नेत्रजन प्रति हेक्टेयर जमीन को 30 से 45 दिनों में मिल जाते हैं तथा अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ जाती है। इससे मिट्टी की भौतिक दशा सुधरती है। परंतु हरी खाद के साथ कई खरपतवार भी रुक जाते हैं। लेकिन यह बढ़ नहीं पाते और बाद वाले फसल में कम खरपतवार पाए जाते हैं।

जैविक खेती के लाभ

क्षारीय मिट्टी या ऊसर में जैविक खाद मुख्य रुप से हरी खाद प्रयोग करने पर मिट्टी की भौतिक एवं रसायनिक दशा सुधरती है। जैविक खेती करने से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक दशा में सुधार देखा जाता है और तो और जमीन में पहले से उपस्थित जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ती है। भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के साथ-साथ भविष्य के लिए भी पोषक तत्व संरक्षित भी रहते हैं। जैविक खाद का उपयोग सभी फसलों में करना लाभदायक होता है।



आज के युग में सभी जागरूक होने लगे हैं और यह जानते हैं कि रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रयोग से पैदा किया गया उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आज हमें अक्सर लोग कहते हुए मिलते हैं कि रासायनिक उर्वरक से पैदा किए अनाज, फल या सब्जी में स्वाद की कमी हो गई है। इसलिए आज के समय में जागरूक उपभोक्ता यह चाहता है कि वह ऐसे खाद का प्रयोग करें जो उर्वरक और कीटनाशक के अवशेष से मुक्त हो यानी कि जैविक खेती से उत्पादित हो।



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