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सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय
जन्म:
16 अगस्त 1904।
जन्म स्थान:
निहालपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।
माता–पिता:
श्रीमती धीराज कुंवर एवं ठाकुर रामनाथ सिंह।
पति:
ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान (खंडवा, मध्यप्रदेश निवासी) से 1919 में विवाह । ठाकुर लक्ष्मण सिंह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त ‘कूली प्रथा’ और ‘गुलामी का नशा’ नामक नाटकों के लेखक, प्रसिद्ध पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और काँग्रेसी नेता थे।
शिक्षा:
क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल इलाहाबाद में प्रारंभिक शिक्षा। इसी स्कूल में प्रसिद्ध कवित्री महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ थीं। पुनः थियोसोफिकल स्कूल वाराणसी में वर्ग 9 तक की पढ़ाई के बाद शिक्षा अधूरी छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़ीं।
प्रधान कर्मक्षेत्र:
समाज सेवा, राजनीति स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, अनेक बार कारावास, मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की एमएलए।
विशिष्ट अभिरुचि:
छात्र जीवन से ही काव्य रचना की प्रवृत्ति, आगे चलकर प्रमुख कवि एवं साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठा।
कृतियां:
मुकुल (कविता संग्रह 1930 ), त्रिधरा (कविता चयन ), बिखरे मोती (कहानी संग्रह ), सभा के खेल (कहानी संग्रह) आदि कृतियां ।
पुरस्कार:
मुकुल पर 1930 में हिंदी साहित्य सम्मेलन का सेकसरिया पुरस्कार ।
निधन:
15 फरवरी 1948, बसंत पंचमी के दिन नागपुर से जबलपुर वापसी में कार दुर्घटना में।
सुभद्रा कुमारी चौहान कव्यग्त विशेषता
सुभद्रा कुमारी चौहान साहित्य की ऐसी सेविका थी जो मात्र कल्पना का पंख लगाकर कसक भरी काव्य रचनाएं करना नहीं जानती थी और ना ही वो विरक्त भावना से प्रेरित होकर जीवन और जगत को भूल जाती थी। उनके साहित्य साधना जीवन मंदिर में प्रारंभ हुई और उसी में उसका अंत भी हुआ। जो कुछ भी उनके साहित्य साधना थे वो जीवन में सत्य उतरती गई और उनके शब्द कार्यों के यथार्थ प्रतिक बनते गए।
सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी जगत की छायावादी काव्य धारा के स्वतंत्र रूप से काव्य रचना करने वाली राष्ट्रीय भाव धारा की प्रमुख और विशिष्ट कवयित्री थी। इन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। इनके अंदर राष्ट्रीय चेतना कूट-कूट कर भरी हुई थी। यह अपने काव्यों से भारतीयों में नवजागरण लाना चाहती थी तथा भारतीय महिलाओं को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए जागृत कर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलनों में सहभागी बनने के लिए प्रेरित करती थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का केंद्रीय भाव और प्रमुख प्रेरणा राष्ट्रीय भावधारा रही है। उनके निजी, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और मानववादि पटलो पर एक ही मूल प्रेरणा, एक ही लक्ष्य और एक ही रंग दिखलाई पड़ता हैं। और वह है_राष्ट्रीय स्वतंत्रता। राष्ट्रिय स्वतंत्रता का स्वर उनके जीवन और काव्य को सुंदर रूप में एक और अखंड कर देता है।
और यही गुण सुभद्रा जी को उनके समकालीन कवियों में भिन्ना और विशिष्ट बनाती है। क्रांतिकारी युवाओं की तरह राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व लुटा देना तथा इसके लिए मर मिट जाने का मंत्र उनके काव्यों में स्पष्ट दिखता है। यह मंत्र मानो संसार से बवंडर या आंधी की तरह उठती है और चारों ओर जैसे एकदम जाती है। सुभद्रा जी वस्तुत: प्रणय गीत, परिवार एवं देश की कवित्री है। उनकी पूरी काव्य साधना के अंदर इसी का स्वर गूंजता है।
टिप्पणियाँ
Sir aapne details information di hai Subhadra Kumari Chauhan ka jeevan parichay acche se samjhaya hai, thank you
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