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गुड़ी पड़वा एक अनोखा त्योहार Gudi Padwa
श्रद्धा और विश्वास का एक अनोखा पर्व है गुड़ी पड़वा। हिंदू धर्म में अनेकों त्योहार मनाए जाते हैं। हम हर वर्ष इन त्योहारों का हर्ष उल्लास के साथ स्वागत करते हैं। इन्हीं में से एक है गुड़ी पड़वा। आइए जानते हैं इस पर्व की खास बातें
गुड़ी पड़वा gudi padwa हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन हिंदू पंचांग के अनुसार नववर्ष की शुरुआत होती है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस पर्व को दक्षिण भारत में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जैसे कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में उगादि, यूगादि, छेती चांद जैसे नामों से जाना जाता है। इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है।
शुभ मुहूर्त
इस वर्ष यह पर्व 1 अप्रैल शुक्रवार के दिन में 11 बजकर 53 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन 11:58 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगी। इस प्रकार उदया तिथि के अनुसार यह पर्व 2 अप्रैल को मनाई जाएगी।
गुड़ी पड़वा का महत्व
महाराष्ट्र में इस पर्व का विशेष महत्व होता है। गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा का अर्थ होता है पर्व यानी विजय का पर्व। इस दिन घर की औरतें सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई स्नान आदि करती हैं। इसके उपरांत घरों में एक विशेष प्रकार की रंगोली बनाई जाती है और मुख्य द्वार पर तोरण द्वार बनाकर घरों को सजाया जाता है। इसके उपरांत गुड़ी को सजा कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। गुड़ी बनाने के लिए बांस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता हैं। इस लकड़ी में हल्दी और कुमकुम लगाई जाती है। एक नई सारी को बांस की लकड़ी के एक सिरे पर बांधकर फूलों की माला और नीम की पत्ती, आम की पत्ती लगाई जाती है और फिर तांबे या पीतल का एक कलस पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर लकड़ी के उस सिरे में लगाई जाती है और घर के मुख्य द्वार पर इसे खड़े कर इसकी पूजा की जाती है। पुनः इसे सूर्यास्त होने के पहले गुड़ी को उतार ली जाती है।
इस दिन मराठी स्त्रियां नौवारी साड़ी और पुरुष केसरिया रंग की पगड़ी के साथ कुर्ता - पजामा या धोती - कुर्ता पहनते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन स्वादिष्ट भोजन पकाया जाता है। खासकर महाराष्ट्र में पुरन पोली, बासुंदी, श्रीखंड, खीर पूरी आदि मुख्य रूप से बनाए जाते हैं।
धार्मिक मान्यताएं
गुड़ी पड़वा से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित है। कहा जाता है कि इस दिन ही श्री राम ने सुग्रीव के भाई बाली का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया था। तभी से इस पर्व को मनाया जाता है और उसी दिन से विजय पताका लहराने की परंपरा की भी शुरुआत हुई।
जनश्रुति है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ही सृष्टि की रचना की थी इसलिए गुड़ी पड़वा को नवसंवत्सर भी कहते हैं।
इसके अलावा दूसरी मान्यता यह है कि महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी तिथि से सूर्योदय से सूर्यास्त तक के महीने, दिन और वर्ष की रचना करते हुए हिंदी पंचांग की रचना की थी।
एक मान्यता यह भी है कि वीर मराठा छत्रपति शिवाजी ने युद्ध जीतने के बाद पहली बार गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। इस दिन से मराठी लोग प्रत्येक वर्ष विजय पताका लहराते हैं और यह पर्व मनाते हैं।
इस दिन नीम की पत्ती को खाने की भी प्रचलन है। मान्यता है कि इस दिन नीम की पत्ती खाने से व्यक्ति पूरे वर्ष रोगमुक्त और स्वस्थ रहता है। मन की सारी कड़वाहट दूर हो जाती हैं। घर से नकारात्मकता दूर हो जाती है और सकारात्मकता का संचार होता है।
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टिप्पणियाँ
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