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पन्हाला किला (कोल्हापुर)
यात्रा वृतांत
हेलो दोस्तो आपका स्वागत है एक नए ब्लॉग में..
मैं इस ब्लॉग में मेरे द्वारा किया गए हाल फिलहाल में कोल्हापुर की यात्रा वृतांत और उससे जुड़ी कुछ अपना अनुभव शेयर करने वाली हूं।
तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं।
कोल्हापुर शहर भारत के महाराष्ट्र राज्य के दक्षिण – पश्चिम क्षेत्र में पंचगंगा नदी के तट पर स्थित है। यह पुणे शहर से लगभग 230 किलोमीटर दूर स्थित है। यह शहर भारत के प्राचीन शहरों में से एक है। यह शहर कोल्हापुरी गहने, कोल्हापुरी चमरे का चप्पल जैसी अन्य वस्तुओ के निर्माण के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस शहर की समृद्ध और सुंदरता को देखने के लिए काफी दूर– दूर से लोग आते हैं। यहां आने के लिए किसी भी प्रकार की टिकट नहीं लगती है। पर्यटक अपनी सुविधा अनुसार किसी भी मौसम में इस जगह को देखने आ सकते हैं।
पन्हाला कैसे पहुंचें
तो दोस्तों मैं पुणे से कोल्हापुर के लिए बस में बैठ जाती हूं। यह बस लगभग 4 से 5 घंटे की सफर के बाद मुझे कोल्हापुर बस स्टैंड में पहुंचा देती है। इसके बाद मेरी तलाश शुरू होती है एक अच्छी होटल की,जो मुझे थोड़ी देर के मशक्कत के बाद मिल जाती है। यहां थोड़ा विश्राम करने के बाद मैं निकल जाती हूं पन्हाला किला देखने के लिए। जो की लगभग कोल्हापुर शहर से 20 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। तो चलिए इस किले से जुडी कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को आपके साथ साझा करती हूं।
पन्हाला किला इतिहास
यह किला सहाद्री पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। जो कि जमीन से 400 मीटर ऊंची है। इस किले का निर्माण शिलाहारा के शासक भोज द्वितीय ने सन 1178 से 1209 के बीच कराया था। परंतु इस किले पर कई शासकों ने कई वर्षो तक राज किया।
16वीं शताब्दी में इस किले पर बीजापुर का अधिकार हो गया। आदिल शाह द्वितीय ने इस किले को शत्रुओं के आक्रमण से रक्षा के लिए कई द्वार और कुछ प्राचीर का निर्माण कराया। कहा जाता है कि इस किले पर जब भी कोई दुश्मन हमला करता था तो वह इस किले के जल स्रोत को सर्वप्रथम जहरीला बना देता था। जिससे बचने के लिए आदिल शाह ने अपने काल में एक गुप्त बावड़ी का निर्माण कराया। जो की आप आज भी यहां देख सकते हैं।
1659 में वीर मराठा शिवजी महाराज ने इस किले पर अपना अधिकार स्थापित किया। पन्हाला का इतिहास मराठा साम्राज्य और वीर शिवाजी के साथ निकटता से जुड़ा है। माना जाता है कि, शिवाजी ने इस किले में 500 से भी ज्यादा दिन रहे। परंतु सिद्धी जौहर ने लगभग पांच महीनों तक इस किले को घेर रखा था। कुछ विपरीत परिस्थितियों के कारण शिवाजी को यह किला छोड़ बच निकलना पड़ा। और दुश्मन सैनिको को रोके रखने का काम बाजीराव देशपांडे और उनके मित्र शिवा काशिद ने अपने कंधों पर लिया। कई घंटो के भीषण युद्ध में वीर मराठा देश पाण्डे शहिद हुए थे और यह किला मुगलों के हाथों चली गई। आप यहां देश पाण्डे के शहादत की याद में बनाई गई उनकी प्रतिमूर्ति देख सकते हैं।
यह किला अब पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं। यह किला दक्कन क्षेत्र के किलों में सबसे बड़ा और भव्य है। इस किले के अन्दर आप कई जगहों को देख सकते हैं।
आंध्र बावडी
आदिल शाह द्वितीय द्वारा बनवाया गया गुप्त बावड़ी जिसका उपयोग जल संरक्षण के लिए उपयोग किया जाता था। यह तीन मंजिला आकार का एक भव्य इमारत के रुप में खड़ा है। जिसकी सीढ़ियां काफी घुमावदार बनी हुई है। इस बावड़ी के अन्दर कई गुप्त मार्ग भी मौजुद थे जो कि सैनिकों के नेतृत्व करते थे।
अंबरखाना
इसका निर्माण मराठों ने किया था और यह आप आज भी देख सकते है। इसी के पास एक पुरानी इमारत है जिसका उपयोग अनाज भंडार को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था।
सज्जा कोठी
यह स्थल इस किले की सबसे ऊंची चोटी है
यह एक तीन मंजिला इमारत है। इस इमारत में आप मुगल कलाकृति को देख सकते है। इस इमारत से इस जगह की खूबसूरती को महसूस किया जा सकता है।
तीन दरवाजा
तीन दरवाजा का अर्थ है तीन द्वार। पन्हाला किला में लगातार मिलने वाले तीन दरवाजा के कारण इस जगह का यह नाम पड़ा। बताया जाता है कि यह वही द्वार है जहां से अंग्रेजों ने मुगलों पर आक्रमण कर यह किला अपने कब्जे में लिया था। यह दरवाजा पन्हाला किला की उच्च संस्कृतिक विरासत के रूप में अब भी मौजुद है।
सच में यह किला पत्थरों और सीसा का उपयोग कर निर्मित समय की कसौटी पर यह अब भी खड़ा है। यह किला भारतीय और मुगल संस्कृति,कलाकृति और नक्काशी के मिश्रण का एक अच्छा उदाहरण है।
तो दोस्तों इस पोस्ट में बस इतना ही मैं मिलती हूं कोल्हापुर के नए स्थल से जुड़े नए ब्लॉग के साथ
यदि आपको यह ब्लॉग पसन्द आया हो तो कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और अपने मित्रों के साथ जरूर साझा करें।
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