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माखन लाल चतुर्वेदी जीवन परिचय

 माखन लाल चतुर्वेदी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व


माखन लाल चतुर्वेदी जीवन परिचय
माखन लाल चतुर्वेदी















माखन लाल चतुर्वेदी जी देश के राष्ट्रवादी कवियों में से एक हैं। इनका जन्म 4 अप्रैल
1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई गांव हुआ था। इनके पिताजी नंदलाल चतुर्वेदी जो पेशे से एक अध्यापक थे। चतुर्वेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा– दीक्षा पास के ही एक विद्यालय में संपन्न हुई। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर 16 वर्ष की आयु में अध्यापन कार्य प्रारंभ कर दिया। इसी समय इन्होंने संस्कृत हिंदी मराठी गुजराती अंग्रेजी आदि कई भाषाओं का अध्ययन जारी रखा। कई वर्ष अध्यापन कार्य करने के पश्चात चतुर्वेदी जी अध्यापन कार्य छोड़कर "प्रभा पत्रिका" के संपादकीय विभाग में कार्यरत हो गए तथा फिर "कर्मवीर" के संपादक बन गए। इसी क्रम में इन्होंने "एक भारतीय आत्मा" नामक ओजपूर्ण राष्ट्रीय कविता लिखी। तब से इनका उपनाम "एक भारतीय आत्मा" पड़ा। 29–30 वर्षो तक लगातार पत्रिका का संपादन और प्रकाशन करते रहे।

इसी दौरान श्री गणेश शंकर विद्यार्थी से अभिप्रेरित होकर इन्होंने भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। फलत: ये कई बार जेल भी गए। कारावास का दंड मिलने के बाद भी माखनलाल चतुर्वेदी जी अपनी लेखनी से स्वतंत्रता के दीवाना में जोश और उमंग भरते रहे।


चतुर्वेदी जी की रचनाएं मुख्यतः राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत है। इनकी कविताओं में स्वातंत्र्य के साथ त्याग और बलिदान की भी भावना का स्वर सर्वत्र मिलता है। इसके अलावा इन्होंने श्रृंगार रस और प्रकृति संबंधी कविताएं भी लिखी है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को वाणी प्रदान करने वाले कवियों में इनका प्रमुख स्थान है। चतुर्वेदी जी का ध्यान रचना करते समय रचना के मुख्य भाव पर केंद्रित रहता था। कविता के बंधनों को यह पूरी तरह स्वीकार नहीं करते। छंद विधान में नयापन लाने के लिए दो-तीन छंदों को मिलाकर एक नए छंद का निर्माण अक्सर ये किया करते थे। शब्द चयन में तत्सम या तद्भव का बंधन भी इन्होंने स्वीकार नहीं किया है। इनकी रचनाओं में बोलचाल के शब्दों के साथ उर्दू फारसी आदि के शब्द भी मिलते हैं।


इनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं–– ‘हिमकिरीटीनी’, ‘हिमतरंगिणी’,‘युगचरण’, ‘समर्पण’ तथा ‘माता’ इनकी प्रमुख रचनाएं हैं और इन्होंने गद्यलेखन भी किया है जिसमें "साहित्य देवता" अत्यधिक प्रसिद्ध है। चतुर्वेदी जी को साहित्य सेवा के लिए कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

*1955 में साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजा गया।

*1959 में सागर यूनिवर्सिटी से डी. लिट. की उपाधि प्रदान की गई।

*1963 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


               माखनलाल चतुर्वेदी जी की एक प्रसिद्ध कविता आप सब ने अवश्य पढ़ी होगी। यह कविता इनकी श्रेष्ठ कविताओं में से एक है। जो कि उस समय सर्वाधिक जनप्रिय हुई थी यह कविता है

माखन लाल चतुर्वेदी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व


         पुष्प की अभिलाषा।


चाह नहीं मैं सुरबाला के, 

                         गहनों में गूंथा जाऊंं।

चाह नहीं प्रेमी माला से,

                   बिंध प्यारी को ललचाऊं। 

चाह नहीं सम्राटों के शव पर,

                       हे   हरि  डाला  जाऊं।

चाह नहीं देवों के सिर पर,

                  चढ़ू  भाग्य  पर  इठलाऊं।

मुझे तोड़ लेना वनमाली,

                उस पथ पर देना तुम फेंक।

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,

               जिस पथ जावें वीर अनेक।



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पुष्प की अभिलाषा कविता का भाव


चर्तुवेदी जी की इस कविता से जनता अत्यधिक प्रभावित हुई थी। इस कविता में कवि ने राष्ट्रीय भावना से कोमल पुष्प को रंग दिया है। यह पुष्प प्रतीक है कवि की भावना का। कवि की भावना प्रतिनिधित्व करती है परतंत्र देश के उन नवयुवकों की भावना को जो राष्ट्र के लिए अपना सबकुछ समर्पण करने के लिए बेचैन थे, उत्सुक थे। अतः यह कविता एक प्रकार का युग संदेश भी हैं।


कवि ने इस कविता को दो खंडों में बांटा है। पहली चार पंक्तियों में पुष्प क्या नहीं चाहता है इसकी व्याख्या की गई है।


पुष्प की अभिलाषा नहीं है कि वह सुरबाला के आभूषणों में गूंथा जाए। उसे कोमलता और सौंदर्य का साहचर्य नहीं चाहिए। वह प्रेमी की माला में भी गूंथना नहीं चाहता और ना प्रेमिकाओं के आकर्षण का विषय ही बनना चाहता है। सम्राटों के शव पर चढ़ाए जाने की लालसा भी उसमें नहीं है। वह यह भी नहीं चाहता कि देवताओं के सिर पर उसे सुशोभित किया जाए।


दूसरे खंड में, अंत की 2 पंक्तियों में कवि ने पुष्प की आंतरिक लालसा का प्रतिरूप उपस्थित किया है।


पुष्प चाहता है राष्ट्र के लिए कुछ करना वह राष्ट्र के सैनिकों की पग–धूली चाहता है बलि के पथ पर बढ़ते हुए सैनिकों के चरणों तले बीछ जाने की लालसा उसे है। अत: पुष्प की अभिलाषा के द्वारा कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि यह पुष्प विलास और कोमलता का पुतला नहीं, समर्पण और विसर्जन का सजीव मूर्ति है।


कवि ने अत्यंत कुशल ढंग से उन सैनिकों की वंदना भी की है जो बलि– पथ के दीवाने राही हैं। संघर्ष ही उनकी साधना का मात्र पथ हैं और राष्ट्र के लिए मिट जाना उनकी मंजिल है। कवि की यही राष्ट्रीय लालसा है जो पुष्प की अभिलाषा के द्वारा व्यक्त हुई है।



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