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रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय ( biographyof Ravinadra Nath Taigor)
टैगोर जी की जीवनी
रविन्द्र नाथ टैगोर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज हम इस लेख में इस महान शख्स के जीवनी को गहराई से जानेंगे।
रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 ईस्वी को कोलकाता के एक समृद्ध ठाकुर परिवार में हुआ था। पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर था तथा माता का नाम शारदा देवी था। 14 भाई-बहनों में टैगोर सबसे छोटे थे। इनका परिवार बड़ा और शिक्षित था।
इन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी। इन्होंने पारंपरिक शिक्षा ग्रहण नहीं किया था क्योंकि यह पारंपरिक शिक्षा के विरुद्ध थे इनका मानना था कि व्यक्ति को प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा देनी चाहिए। जिससे उसे आनंद का अनुभव हो ना की पढ़ाई के बोझ का।
इनके पिता देवेंद्रनाथ समाज सेवा के कार्य हेतु देश भ्रमण पर रहते थे। ये अध्यात्म में विश्वास करते थे एवं ब्रम्ह समाज से जुड़े थे। ऐसे में टैगोर की शिक्षा का दायित्व इनके बड़े भाइयों पर था। इनके सबसे बड़े भाई महेंद्रनाथ बहुत बड़े कवि और दार्शनिक थे। एक भाई सत्येंद्र नाथ जो कि भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1764 में यूरोपियन इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की थी। दूसरे एक और भाई जितेंद्र नाथ अच्छे नाटककार और संगीतकार थे। इनकी एक बहन स्वर्णकुमारी भी निवेलिस्ट थी।
इनके सबसे बड़े भाई महेंद्रनाथ ने इन्हें घर पर ही सभी विषयों की शिक्षा दी। टैगोर जी के प्रिय विषय थे अंग्रेजी, गणित, इतिहास, संस्कृत और साहित्य। इसके साथ-साथ ही इन्हें जूडो, संगीत, तैराकी आदि की शिक्षा दी गई। साहित्य में इनका विशेष रुचि था। 1878 तक इन्होंने कई साहित्यिक रचनाएं कर दिए थे।
रविंद्रनाथ टैगोर के पिताजी देवेंद्रनाथ टैगोर उनको बैरिस्टर बनाना चाहते थे। इसलिए टैगोर जी को 1878 ईस्वी में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया। परंतु इन्होंने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दो साल बाद 1880 में भारत वापस आ गए। क्योंकि इनका मन ज्यादांतर अध्यात्म, साहित्य, कला की ओर आकर्षित होता था।
रविंद्र नाथ टैगोर वापस भारत आकर साहित्य की दुनिया से जुड़ जाते हैं और अपना लेखन प्रक्रिया शुरू करते हैं। वह उस समय कि भारती नामक पत्रिका में लिखना आरंभ करते हैं। इस दौरान उनकी कई कहानियां, कविताएं, नाटक, गीत और लेख प्रकाशित हुई। 1883 में इनका विवाह मृणालिनी देवी से होता है। कुछ सालो बाद सन् 1902 में मृणालिनि जी का देहांत हो जाता है। टैगोर जी को इसकी गहरी सदमा लगती है।
रविंद्र नाथ टैगोर उस समय जब संसाधन का गहरा अभाव था लगभग 34 देशों का भ्रमण किया। इन्होंने गरीब मजदूरों और किसानों के दयनीय जीवन को बहुत करीब से देखा। ये लोगों के बीच जाते थे उनके कष्टों और समस्याओं को समझते थे। और दूर करने का प्रयास करते थे। 1901 में पश्चिम बंगाल की ग्रामीण क्षेत्र में इन्होंने शांतिनिकेतन नामक विद्यालय की स्थापना की। जहां वो स्वं भी अध्यापन कार्य भी किया।
1905 ईसवी में ब्रिटिश द्वारा बंगाल का विभाजन हुआ तो इन्होंने रक्षाबंधन का त्योहार मना कर बंग - भंग आंदोलन की शुरुआत की। उसी समय इन्होंने प्रसिद्ध गीत अमार सोनार बांग्ला की रचना की जो कि आज बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान हैं। जैसा कि आपको पता है कि हमारे भारत देश की राष्ट्रीय गान जन- गण - मन इन्होंने ही लिखी थी जो कि 1911 में कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार गाया गया।
इनकी सबसे परसिद्ध रचना 103 कविताओं का संग्रह गीतांजलि है। जिसकी मूल भाषा बंगाली है। कहा जाता है कि इन्होंने इंग्लैंड के एक दौरे के दौरान रास्ते में इसका अंग्रेजी अनुवाद किया जो लंदन में william butler yeats के द्वारा इसका पाठ किया गया। उन्होंने गीतांजलि का अंग्रेज़ी में प्रकाशन किया। उसके बाद तो गीतांजलि काव्य संग्रह की हजारों प्रतियां छपी। इस कविता के कारण टैगोर जी को वहां अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। सन 1983 को गीतांजलि के लिए रविंद्र नाथ टैगोर टैगोर नाथ टैगोर किसी पहचान के मुहताज नहीं है। इन्होंने भारतीय साहित्य को जिस बुलंदियों पर पहुंचाया है। शायद ही कोई कर पाता।को एशिया का पहला नोबेल पुरस्कार मिला। इस प्रकार यह भारत के नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम व्यक्ति बने। यह देश के लिए बहुत ही गर्व की बात है। रविन्द्र
इस प्रकार ब्रिटिश सरकार में भी भारतीयों के प्रति अब सम्मान की भावना बढ़ने लगी। 3 जून 1915 को ब्रिटिश द्वारा टैगोर जी को नाइटहुड की उपाधि से नवाजा गया। परंतु यह साहित्यकार होने के साथ बहुत बड़े देश भक्त भी थे। 1919 में हुए अमृतसर में जालियांवाला बाग हत्याकांड में देश के बेगुनाहों के ऊपर गोली चलाई गई। जिसमें कितने लोगो की जाने गई कितने घायल हुए। अंग्रेजो द्वारा किए गए इस हत्यकड के बाद इन्होन नाईट हुड की उपाधी लौटा दी।
आईए जानते हैं टैगोर जी का विचार
*केवल खड़े होकर पानी को निहारने से आप समुद्र पार नहीं कर सकते।
*मैं सोया और सपना देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और देखा कि जीवन ही सेवा है। मैंने अभिनय किया और देखा सेवा ही आनंद थी।
*बादल मेरे जीवन में तैरते हुए आते हैं अब बारिश या तूफान लाने के लिए नहीं, बल्कि मेरे सूर्यास्त आकाश में रंग जोड़ने के लिए आते हैं।
*हर बच्चा यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है।
*मृत्यु प्रकाश को बुझाना नहीं है, यह केवल दिया बुझ रहा है क्योंकि भोर हो गया है।
*सुंदरता सच्चाई की मुस्कान है जब वह एक आदर्श दर्पण में अपना चेहरा देखती है।
* सब कुछ हमारे पास आता है जो हमारा है अगर हम इसे प्राप्त करने की क्षमता पैदा करते हैं।
दोस्तो आपको यह लेख कैसा लगा जरूर comment box में जरूर बताएं , और इसे share करना ना भूलें।
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टिप्पणियाँ
Very nice 👌
जवाब देंहटाएंGreat Article👍
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