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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यक परिचय in Hindi (biography of Surykant Tripathi Nirala in Hindi)
साहित्य के इतिहास में निराला जी का व्यक्तित्व ही निराला है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सन् 1897 ईस्वी में बंगाल के महिषादल में हुआ था। इनके पिता जिला उन्नाव(उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। जो आजीविका के लिए बंगाल चले गए थे। निराला जी की प्रारंभिक शिक्षा महिषादल में ही हुई। नवम वर्ग तक स्कूली शिक्षा ग्रहण कर। घर पर ही स्वअध्ययन द्वारा अनेक भाषाओं जैसे– संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी आदि का ज्ञान अर्जित किया।
14 वर्ष की आयु में सूर्यकुमार (निराला के बचपन का नाम) का विवाह मनोहरा देवी से हुआ। जिनकी प्रेरणा से वे हिंदी साहित्य की ओर झुके। भाषा तथा साहित्य के साथ संगीत और दर्शनशास्त्र में भी निराला जी की प्ररारंभ से रुचि थी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की विचारधारा का इन पर गहरा प्रभाव था। इनका स्वभाव स्वच्छंद प्रकृति का था। बचपन से ही उनका मन विशेष रूप से पढ़ाई में नहीं लगता था। जबकी भ्रमण करना,खेलना,तैराकी इनको अधिक प्रिय था।
इनका व्यक्तित्व अत्यंत भव्य और आकर्षक था। इनका पारिवारिक जीवन अत्यंत ही संघर्षमय और दु:खपुर्ण था। मनोहर देवी के असामयिक निधन से वे शोकसंतप्त हुए और फिर तो लगातार एक एक कर अनेक स्वजनों के विछोह की दारुण वेदना झेलते रहे। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष की एक अंतहीन कहानी है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्य में योगदान
त्रिपाठी जी छायावाद के प्रमुख चार आधार स्तंभों (सुमित्रानंद पंत, जशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा) में से एक माने जाते हैं। इनका आविर्भाव परंपराओं केे मध्य में हुआ। किंतु निराला जी कविता के क्षेत्र में नवीनता लाना चाहते थे। अत: इन्हें जीवन केेे प्रत्येक क्षेत्र में लोहा लेना पड़ा। निराला एक आदर्शवादी कवि हैं। इनके स्वर में दार्शनिकता झलकती है। उस युग के दार्शनिक पत्र “समन्वय” के संपादक भी रह चुके हैं। उनके लेेेेखों में इस आदर्शवादी विचारधारा की व्याख्या एवं विश्लेलेषण भी मिलता है। यह सत्य है कि निराला के अधिकांश रचनाओं में मानवीय जीवन के ही चित्र अंकित हैं।
निराला की प्रतिभा बहुमुखी थी। कविता के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास, कहानियां, निबंध और स्मरण भी लिखें हैं। मूलत: ये कवि है और छायावाद के प्रवर्तक में इनका अन्यतम स्थान है। उनकी कविता के विषयों में भी पर्याप्त विविधता है। श्रृंगार, प्रेम, रहस्यवाद, राष्ट्रप्रेम और प्रकृति वर्णन के अतिरिक्त शोषण के विरुद्ध विद्रोह और मानव के प्रति सहानुभूति का स्वर भी उनके काव्य में पाया जाता है। इसलिए इन्हें ओज और पौरुष का कवि कहा जाता है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली
निराला का विद्रोही स्वभाव परंपरागत छंद विधान को स्वीकार नहीं कर सका। इन्होंने मुक्त छंद का विकास किया। प्रारंभ में साहित्य जगत में इनका घोर विद्रोह हुआ और इनके मुक्त छंद के उपहासास्पद नाम रखें। किंतु निराला विचलित नहीं हुए और अंत में साहित्य जगत को इनकी प्रतिभा के महत्व को स्वीकार करना पड़ा।
वे जहां एक ओर श्रृंगारिक और भक्तिपूर्ण रचनाएं कि वहीं दूसरी ओर इन्होंने पौरुष और राष्ट्र प्रेम से परिपूर्ण कविताएं भी लिखी हैं। इनकी उत्कृष्ट छायावादी कविताओं की भाषा में तत्सम शब्दों का बाहुल्य है। लंबी समस्त पदावाली, गहन विचार और लाक्षणिक शैली के कारण इनकी कविता साधारण पाठक को कुछ कठिन प्रतीत होती है। उनके व्यंग–काव्य की भाषा में कहीं भी तीखापन और उदात्त रूप नहीं मिलता। परंतु आध्यात्मिक तथा प्रार्थना—परक कविताओं में भाषा का मधुर और प्रौंढ रुप मिलता हैं। इनकी कविताओं में खड़ी बोली की प्रधानता है।
निराला की रचनाएं।
उन्होंने कविताओं के साथ उपन्यास, कहानी, रेखाचित्र और आलोचना के क्षेत्र में भी काम किया है। उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं।
परिमल (1930) गीतिका (1936) अनामिका (1923) तुलसीदास (1940) कुकुरमुत्ता (1942) अणिमा(1943) नए पत्ते (1946) बेला (1946) अर्चना (1950) आराधना (1953) गीतकुंज (1950) आदि।
निधन
निराला का संपूर्ण जीवन संघर्ष की एक अंतरिम कहानी है। जीवन के अंतिम दस – बारह वर्ष प्रयाग के दारागंज मुहल्ले में बिताया। कबीर के समान उन्होंने भी विरोधो का गरल पान किया। और अंत में सन् 1961 में इनका देहावसन हो गया।
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टिप्पणियाँ
Nice Information...
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंBabu sach me dil aur dimag dono khush ho gya pdh kr
हटाएंGreat content...keep up the good work
जवाब देंहटाएं@Saira Hasnain
हटाएंThanks for your support
Keep visiting
https://wwwkeepmovingnext.blogspot.com/2021/07/blog-post.html?m=1
Thanks
हटाएं😊😊